सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट घोटाला प्रकरण – 5 : बिना किसी उच्चस्तरीय जांच व परीक्षण के ही धामी शासन लेने जा रहा है शेखचिल्ली फैसला? – Polkhol

सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट घोटाला प्रकरण – 5 : बिना किसी उच्चस्तरीय जांच व परीक्षण के ही धामी शासन लेने जा रहा है शेखचिल्ली फैसला?

जन-धन की वर्बादी और नमामि गंगे परियोजना को धूल धूसरित करने की योजना परवान चढ़ने की तैयारी में!
15 से 20 प्रतिशत की खाईबाडी में करोड़ों का खेल?
सचिव पेयजल को फिर भ्रमित व गुमराह कर रहा पेयजल निगम एवं जिला प्रशासन?
जब टेण्डर की बैंक गारंटी (BG) की अवधि ही हो चुकी‌ समाप्त तो फिर कैसे होगा एसटीपी का निर्माण?
क्या 6 हजार वर्ग मीटर हैचएरिया वाली व 8 हजार वर्ग मीटर की परियोजना को 5 हजार वर्गमीटर में ही धरातल पर कैसे उतारेंगे, ये कलयुगी जलनिगम अभियंता !
…और तब तो 3 हजार वर्गमीटर भूमि का अतिक्रमण कर जीना मोहाल करेगी क्या ये एसटीपी? या फिर जन आक्रोश के कारण बंद हो जायेगी!

(पोलखोल-तहलका ब्यूरो चीफ सुनील गुप्ता की पड़ताल में हुआ खुलासा)
देहरादून। भ्रष्टाचार में कीर्तिमान स्थापित करने की ओर अग्रसर उत्तराखंड में जब-तब घोटाले उजागर होते रहते हैं किन्तु उन पर कड़ी और संदेशात्मक कार्यवाही न होने से इन भ्रष्टाचारियों और घोटालेबाजों के हौंसले बुलंद हैं। जहां एक ओर डबल इंजन वाली धामी सरकार भ्रष्टाचार पर जीरो टालरेंस का ढोल पीट पीट कर ढोलक और ढोल दोनों को फोड़ने में ही अपनी पीठ थपथपा रही वहीं इसके शासन में बैठे कर्णधार अपने अधीनस्थों की चिकनी-चुपडी बातों में आकर गुमराह व भ्रमित होकर बजाए उन पर सख्त कार्यवाही करने के उन्हें ही वह प्रदान कर रहे हैं तभी तो एकबार गलत रिपोर्ट प्रस्तुत करने वाले अधिकारियों को ही जांच कर पुनः जांच कराकर सोलह दूनी आठ का पहाड़ा पढ़े जा रहे हैं। या फिर ये कहना भी कोई अतिश्योक्ति न होगा कि शासन में बैठे ये आला अफसर शेखचिल्ली यों की भांति ख्याली पुलाव में मस्त हो या तो विवेक हीन हो गये हैं या फिर इनकी भी सहभागिता बहती हुई इस गंगा में गोते लगाने की है? ऐसा ही एक और मामला मुख्यमंत्री धामी के सीधे आधीन पेयजल और गंगा मिशन मंत्रालय का सामने आया है जिसमें नमामि गंगे परियोजना के अन्तर्गत लगने वाले एसटीपी का विगत काफी दिनों से प्रकाश में आया है और उक्त एसटीपी में व्याप्त भ्रष्टाचार और घोटालेबाजी को लेकर यह चौथी तस्वीर हमारे द्वारा उजागर की जा रही है।
ज्ञात हो कि हमारी पड़ताल में ऐसे ऐसे तथ्य राजधानी दून की सपेरा बस्ती – मोथरोवाला में केन्द्र सरकार की ओर से लगभग 78 करोड़ की लागत से लगने वाली 15 एमएलडी का सीब्रेज ट्रीटमेंट प्लांट लगाया जाना है। उक्त परियोजना को लगभग सात-आठ माह पूर्व ही धरातल पर उतारने का जिम्मा उत्तराखंड शासन के द्वारा अपनी कार्यदाई ऐजेन्सी पेयजल निगम देहरादून को सौंपा गया था जिसमें प्लांट हेतु 6 हजार वर्गमीटर भूमि का चयन व खरीद से लेकर प्लांट के निर्माण व रखरखाव भी किया जाना है। इस महत्वाकांक्षी परियोजना में प्रारम्भ से ही जो खाईबाडी का खेल खेलना‌ शुरू किया गया, उसे हम पूर्व में ही प्रकाशित कर चुके हैं अब उसमें जो खेल अब खेला जा रहा है तथा राज्य सरकार एवं केन्द्र सरकार दोनों की लगने वाली करोड़ों की लागत अर्थात जन-धन की वर्बादी और बंदरबांट का जो नायाब तरीका निकाला गया है उसे जानकर आप भी हैरान रह जायेगें।
देखिए कुछ बिडर्स के द्वारा दिये गये लेआउट…
 
सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार पेयजल निगम के अति वफादार अधिकारियों की वफादारी ऐसी कि जिसमें वे सब बड़ी मेहनत और निष्ठा से चिंतित व प्रयासरत दिखाई पड़ रहें हैं की नूराकुश्ती और नमामि गंगे के परियोजना अनुभाग की हाथ पर हाथ मौन होकर पल्ला झाड़ लेने वाली तमाशबीन बने रहने की आदत से प्रदेश की उक्त परियोजना जहां एक ओर समय पर न लगने से खटाई में पड़ सकती है वहीं दूसरी ओर धामी सरकार की छवि को भी खासा बट्टा लगा सकती है। चूंकि इनमें‌ जिस तरीके से 15% से 20% की खाईबाडी कान्ट्रेक्टर से मिल कर हो रही है वह अपने आप में ही हैरत अंगेज है। हमेशा यही सुनने को मिलता था कि सांठ-गांठ करके अधिक दरों पर टेण्डर दे दिया गया या पूलिंग करा दी गयी परन्तु यहां तो खेल ही ऐसा प्रतीत हो रहा कि पैसे ज्यादा काम के और काम 20% कम तभी तो जो एल-1 आया है उसके अनुसार उक्त पूरे प्लांट हेतु उस बिल्डर को 5300 वर्गमीटर भूमि चाहिए जबकि जो परियोजना केन्द्र द्वारा निर्धारित है उसके अनुसार भूमि 6000 वर्गमीटर चाहिए। बात यहीं तक नही रही बल्कि अब उक्त एसटीपी एक तीर से दो शिकार के अन्तर्गत डबल काली कमाई के खेल में 5019 वर्गमीटर भूमि में स्वयं भू सर्वेसर्वा बनकर जल निगम द्वारा कर दी गयी। यहां यह भी उल्लेख करना उचित होगा कि उक्त एल-1 निविदा दाता सहित सभी ग्यारह निविदादाताओं की एक करोड़ तीस लाख रुपये की  (BG) बैंक गारंटी भी 31-12-2023 को समाप्त हो चुकी है। ऐसी स्थिति में उक्त निमार्ण कार्य अब कौन करेगा कौन नहीं या फिर अभी भी वहीं लागत आयेगी सहित अनेकों संशय बरकरार हैं। जब अभी यहीं निश्चित नहीं है कि काम किसने करना है और परियोजना पर प्रश्न चिन्ह लग चुका है तो यह फिर उठा-पटक और समय व मशीनरी (स्टाफ, सरकारी अमले) का कीमती समय वर्बादी क्यों? टेण्डर नियमों और प्रक्योरमेंट पालिसी के अनुसार उक्त टेण्डर आटोमैटिक निरस्त हो चुका है क्योंकि निविदा आमंत्रण के समय जो स्पेशिकेशन होते हैं उसे बदलते ही वह स्वाभाविक रूप से निरस्त हो जाता है।
यहां उल्लेख करना उचित होगा कि धामी शासन के समक्ष भूमि चहेते की क्रय किये जानी सम्बन्धी पूरी सच्चाई आ चुकी है और यह भी तथ्य उजागर हो चुका है कि उक्त अनुचित व अनुपयुक्त भूमि की खरीद फरोख्त में एक हजार प्रति वर्गमीटर की खाईबाडी की जा रही‌ है तभी तो पूरा अमला सरकारी उपलब्ध अतिक्रमित भूमि पर अनर्गल एवं औचित्यहीन कमियां व अधिक खर्चा बताकर अपना काम बनता भाड़ मे जाये जनता! फिरं इनका क्या वर्बादी जन-धन की हो या परेशान जनता हो? यही नहीं जिस सर्ब प्रथम चयनित व निर्धारित पर्याप्त एवं उपयुक्त भूमि पर उक्त एसटीपी की डिज़ायनिंग एक्सपर्ट द्वारा बनाई गयी थी, को भी महज भ्रष्टाचार मुक्त कार्यप्रणाली और अनावश्यक अड़ियल रवैया व स्वार्थ पूर्ति न होने के कारण षड्यंत्र के तहत वहीं पुरानी रिपोर्ट पर लीपापोती कर शासन को गुमराह व भ्रमित कर अनर्गल रूप से अनुचित ठहराया जाना कहां तक उचित है? बताया जा रहा है तभी तो पेयजल निगम के द्वारा केवल‌ दो ही प्रस्तावों का उल्लेख किया गया है जबकि भूमि सम्बंधी तीन प्रस्ताव हैं।
सूत्र व विशेषज्ञों की अगर यहां यह भी मानें तो यदि 6 हजार वर्ग मीटर हैचएरिया वाली लगभग 8 हजार वर्ग मीटर की परियोजना को 5 हजार वर्गमीटर में ही धरातल पर उतारने का अनुचित प्रयास पकिया गया तो योजना के एसटीपी प्लांट को सुचारू रूप से चलाने के लिए जो भूमि पार्किंग, मैटीरियल डम्पइंग, सुरक्षा केबिन, गोदाम और कार्यालयों से लेकर प्लांट से निकलने या उपयोग में आने वाली खतरनाक गैसों से आस-पड़ोस के जनजीवन की सुरक्षा कैसे होगी? इसी लिए हैं एरिया और अतिरिक्त एरिया भूमि को योजना में सम्मिलित किया जाता है ना कि किसी घरेलू निजी मकान या भूसे के गोदाम की तरह हौचपौच! परिणामस्वरूप आगे आने वाले समय में जब एसटीपी अपना कार्य शुरू करेगी तब 3 हजार वर्गमीटर भूमि या तो सेना की या फिर कालोनीवासियों की, स्कूल के खेल के मैदान की होगी जिस पर अतिक्रमण किया जायेगा और तब यहां के लोगों का जीना मोहाल कर सकेगी यही एसटीपी? अथवा फिर जन आक्रोश के कारण अन्य परियोजनाओं की तरह यह भी बंद हो जायेगी? जिस योजना या परियोजना का भविष्य ही गर्त में उस पर जन-धन की वर्बादी आखिर क्यों?
मजेदार बात यहां यह भी है उत्तराखंड के वित्त मंत्रालय सहित मुख्य सचिव एवं मिशन निदेशक, एसपईएमजई व एमडी पेयजल निगम को भी अनेकों लोगों के द्वारा अनेकों स्तरों पर चल रहे गड़बड़झाले के बारे में अवगत भी कराया जा चुका है परंतु फिर भी बजाए पेयजल निगम के दोषी और स्वार्थी अधिकारियों पर परियोजना में काली दाल पकाने पर ऐक्शन होना चाहिए था!
देखना यहां गौर तलब होगा कि क्या धामी शासन के मुख्य कर्णधार व विभागीय कर्णधार पेयजल निगम की उसी भ्रष्टाचार व संदिग्ध लाईन पर परबान चढ़ाते हैं और किसी अन्य कार्यदाई संस्था, विभाग एवं ऐजेन्सी के माध्यम से परियोजना को साकार करते या फिर उसी रंग में रंग कर जन-धन की वर्बादी….?
क्या वित्त विभाग आंख बंद कर भूमि क्रय करने के लिए भुगतान की अनुमति दे देगा या फिर…!

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