…और नमामि गंगे की गंगा में घोटालेबाजों के गोते : धामी शासन की आंख पर काला चश्मा!
सपेरा बस्ती मोथरोवाला – एसटीपी प्रकरण-7 : वित्त विभाग को भेजी जा चुकी है पत्रावली?
पेयजल निगम व भू स्वामी मिलकर रच रहे हैं धूल झोंकने का प्रयास?
50 लाख की खाईबाडी व 30 लाख का काला चूना?
पोल है तो खुलेगी ही : जब कागजों में पूरी, मौके पर कम फिर भी भुगतान होगा पूरा, क्यों?
(ब्यूरो चीफ सुनील गुप्ता)
देहरादून। राष्ट्रीय स्वच्छता मिशन के अन्तर्गत नमामि गंगे परियोजना के अधीन जगह जगह लगायें जाने वाले सीवर ट्रीटमेंट प्लांट की श्रृंखला में 15 एमएलडी क्षमता का एक प्लांट सपेरा बस्ती, मोथरोवाला में अब तक लग कर योजनानुसार चालू भी हो जाना चाहिए था परन्तु इस डबल इंजन सरकार और भ्रष्टाचार पर जीरो टालरेंस वाली सरकार में कोई भी परियोजना में डबल टाईम न लगे और घोटाला न हो, सम्भव तो नहीं दिखता? क्योंकि देवभूमि उत्तराखंड में भ्रषट और घोटालेबाजों की भरमार जो है जिनके दांत खाने के और दिखाने के और हैं। यही नहीं ये इतने शातिर और चालाक हैं कि अपने शीर्ष अधिकारियों और धाकड़ धामी के शासन में दिन भर मीटिंगों के ढकोसले में बैठे आला अफसरों की भी आंखों में धूल झोंकने से नहीं चूकते वहीं इन सिपहसालारों की अगर बात की जाए तो कुछ एक को छोड़कर धामी के नाम की लूट है लूट सके तो लूट वरना रिटायर हो जायेगा फिर पछताने से..! वैसे भी इन आला अफसरों और ब्यूरोक्रेट्स की दुनिया सचिवालय का एसी रूम ही तो है, इन्हें मौके पर जांचने और परखने की आवश्यकता ही कहां? जिला प्रशासन और कार्यदाई संस्था के चंगूमंगू जो मिलकर बता दें वही सही ! ऐसा ही एक घोटाल व इनकी गजब की वफादारी और कर्तब्य परायणता व अपनी लम्बी तोते जैसी रट एवं अड़ियल रवैये से लवरेज योजना को पलीता लगाने वाला मामला विगत लगभग दो वर्षों से देखने को मिल रहा है। उक्त एसटीपी प्रकरण में घोटालेबाजी का जितना खुलासा किया जा चुका है उस पर यदि तनिक भी पेयजल सचिव और अपर सचिव व परियोजना निदेशक, नमामि गंगे सहित पेयजल विकास निर्माण निगम के शीर्ष अधिकारी चाहते तथा बल बुद्धि का प्रयोग करते तो शायद घोटालेबाजों की दाल न गल पाती! और उक्त एसटीपी प्लांट बनने से पहले ही दम तोड़ता दिखाई न पड रहा होता?
ज्ञात हो कि इस सीवर ट्रीटमेंट प्लांट हेतु कार्यदाई संस्था उत्तराखंड पेयजल निर्माण एवं विकास निगम की दून इकाई एवं जिला प्रशासन को 6000 वर्गमीटर सही, पर्याप्त व उपयुक्त भूमि का चयन करके क्रय किये जाने का प्रस्ताव शासन को एक वर्ष पहले ही भेजा जाना था और बीते नवम्बर तक ट्रीटमेंट प्लांट चालू भी हो जाना था। परन्तु ऐसा तभी हो पाना सम्भव होता जब इसमें इनके अधिकारियों की नियत साफ़ होती और काली कमाई व भ्रष्टाचार से इन्हें दूर रहने की आदत होती। बात यहां केवल पेयजल निगम की ही नहीं है यहां तो जिला प्रशासन व राजस्व के हाथ में भी “अदरक की गांठ आ गयी और पंसारी बन बैठे” उनके लिए भूमि चयन करके देना था। मजेदार बात यहां है कि जब भूमि चयन में हो रही धांधलेबाजी और छोटी नहीं मोटी खाईबाडी का खुलासा हुआ जिसमें ये एक तीर से दो शिकार कर सत्ता पक्ष के नेताओं को भी खुश कर रहे थे और उनकी अधूरी, अपूर्ण एवं अनुपयुक्त भूमि को जैसे भी हो एक साजिश के तहत ऐन-केन-प्रकरेण चयन करने पर आमादा हो रखे थे यही नहीं इनके इस अड़ियल रवैये और तथाकथित ईमानदारी का लवादा ओढ़े जिलाधिकारी की अध्यक्षता वाली चयन समिति व खनिज और भू-गर्भ वैज्ञानिक सहित पेय जल निगम ने परियोजना के अनुसार वांछित 6000 वर्गमीटर भूमि का चयन करके देना था किन्तु वहां तो काली कमाई और चांदी की चमक दिखाई पड़ रही थी इसीलिए नेताजी भी खुश और अपनी भी मौज के इरादे से पेयजल निगम द्वारा प्लांट को मनमर्जी से बिना किसी नियमों और गाइडलाइंस की परवाह किये 5300 वर्गमीटर में समेट किसी R.K. Engineers (JV) को कान्ट्रैक्ट दे दिया जाने की योजना को कुछ काले रहस्य छिपाते हुए L-1 को कान्ट्रैक्ट देने का खाका तैयार कर दिया गया।
आईए अब आपको उस काले रहस्य के पीछे के काले राज से अवगत कराते हैं जिनमें तथाकथित रूप से 80लाख की खाईबाडी की बात सामने आ रही है जिसके अनुसार एक हजार रुपये प्रति वर्गमीटर का चयन हेतु सुविधा शुल्क एव मौके पर लगभग दो सौ मीटर भूमि कम का एडजेस्टमेंट जिसकी लागत लगभग 15700 x 198 वर्गमीटर = 30 लाख का सीधे सीधे काला चूना शासन में बैठे कान खुले, आंखें बंद वाले आला अफसरों से प्रस्भूताव स्वीकृत करा लिया गया है। एक तो छः हजार की जगह भूमि बिना इन फाल और आऊट फाल के आवादी और बच्चों के स्कूल के साथ लगी हुई जमीन वह भी L-1 बिडर को मिनिमम 5300 वर्गमीटर की जगह गुपचुप तौर पर 5019 वर्गमीटर में समेट दिया गया और अब सबसे हैरत अंगेज कारनामा यह कि मौके पर जमीन कम, कागजों में अधिक और प्रस्ताव व परियोजना कुछ…? विचारणीय महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि खाईबाडी और काली कमाई का जो भी खेल होगा वह तो अप्रत्यक्ष है परन्तु यहां तो परियोजना को शुरुआत में ही विकलांग बनाया जा रहा है तथा स्वार्थवश विनाश किया जा रहा है और धामी के धाकड़ शासन पेयजल, नमामि गंगे एवं वित विभाग को खुलेआम 4820 वर्गमीटर भूमि का प्रस्ताव 5019 वर्गमीटर में बनाकर सीधे सीधे लगभग 30लाख की धूल आंखों में झोंकी जा रही है। यही नहीं इस भूमि की खरीद में रजिस्ट्री खर्च के नाम पर भी लाखों रुपये की हेराफेरी भी उजागर हो रही जिसे वास्तविकता से कहीं अधिक “माले मुफ्त दिले बेरहम” दिखाया गया है इसी प्रकार बाउंड्रीबाल के नाम पर क्ष सत्ताधारी नेताओं को खुश करके पौ-बारह किये जाने हैं? बताना यहां यह भी उचित होगा कि शासन और नमामि गंगे परियोजना निदेशक आदि के द्वारा केन्द्र सरकार के दिल्ली में बैठे राष्ट्रीय गंगा मिशन महानिदेशक को भी भ्रमित किया जाता रहा है गलत व भ्रामक एवं वास्तविकता से परे सूचनाएं देकर नजर अंदाज किया जाता रहा है!
देखिए इन्हीं के आरटीआई में प्राप्त दस्तावेजों से हकीकत ….
ज्ञात हो कि जिस कोठारी की भूमि का प्रस्ताव इस भ्रष्टाचारी काकस के द्वारा शासन की आंखों में धूल झोंककर वित्त विभाग को भुगतान हेतु भिजवाया जा चुका है वह भूमि एक प्रतिष्ठित आर्चीटैक्ट के अनुसार कंटूर सर्वे में कुल मिलाकर मात्र 4820 वर्गमीटर ही निकल रही जबकि भू स्वामी के द्वारा 5019 वर्गमीटर के दस्तावेज शरारती और बदनियती से सांठ-गांठ के तहत उपलब्ध करायें गये है। बताया जा रहा है उक्त नेता जी 200 वर्गमीटर भूमि को कब्जा देकर किसी को चुप-चुपाते पहले ही बारे न्यारे कर चुके हैं।
देखिए पेयजल निगम व भू-स्वामी द्वारा दिये भूमि के प्रस्ताव मैप व कंटूर मॅप में सांठ-गांठ की खुलती पोल…
देखना यहां गौरतलब होगा कि धाकड़ धामी सरकार व उनके धाकड़ शासन के सिपहसालार इस गोरखधंधे और आंखों में धूल झोंक कर लाखों के बारे न्यारे करने और गलत भूमि चयन की प्रक्रिया पर क्या रुख अपनाते हैं या फिर रिजल्ट रहते हुए अड़ियल रवैया ही अपनाये रखकर इन घोटालेबाजों को सरंक्षण प्रदान करते रहने में विश्वास रखते हैं अथवा….?