वाह रे, वाह! ऊर्जा विभाग के यूपीसीएल में करोड़ों का खुलेआम गबन या गोरखधंधा? – Polkhol

वाह रे, वाह! ऊर्जा विभाग के यूपीसीएल में करोड़ों का खुलेआम गबन या गोरखधंधा?

क्या टीडीएस कम्पनी और एमडी की सांठ-गांठ पर लगेगा विराम? 

बिलिंग के खेल में भी महाघोटाला : करोड़ों की आधी रकम हर महीने किसकी जेब में?

इस करोड़ों की डकैती में माल ही नहीं मैनपावर का होता है अजब-गजब खेल भी मतलब साफ है दोनों हाथों से लूट!
घरेलू उपभोक्ताओं की बिलिंग तो एक बानगी है?
विछ चुकी विशात फिर एक्सटेंशन की! मुख्य सचिव व चेयरमैन ऊर्जा लेंगी क्या संज्ञान इस खेला पर?

जब काम आधा तो भुगतान पूरा क्यों?

सैंकड़ों करोड़ के एडीबी फंडिड टेण्डरों में यहां भी खेला जा चुका SOR’s का महाखेल : कौन करायेगा जांच?

ये कैसा मुनीम एमडी है जिसे खरीदी का पता, परंतु इनर्जी बेची कितनी, का पता ही नहीं?

इनकी नौटंकी से ही उत्तराखंड में क्वालिटी बिडर्स नहीं करते पार्टीशिपेट : 2017 से एक ही कान्ट्रैक्टर को दिया जा रहा नियम विरुद्ध एक्स्टेंशन?
करोड़ों की बर्वादी करके ट्रांसफार्मरों पर मीटर क्यों‌ लगे थे?
कमाई अपनी जेब में और दर वृद्धि की तोहमत उपभोक्ताओं पर?
बिलिंग टेण्डर प्रकिया को एमडी ने बनाया मजाक! और करते हैं बिडर्स का उत्पीड़न?
जब रेट कम तो महंगे कान्ट्रैक्टर को ही का बार-बार विस्तार क्यों?
तीन से चार रुपये प्रति बिल के हिसाब से करोड़ों की खाईबाडी, हर महीने किसकी जेब में!
(पोलखोल-तहलका की पड़ताल में हुआ खुलासा)
देहरादून।  ऊर्जा विभाग में घोटालेबाजी की‌ ऊर्जा में भ्रष्टाचार के चलते वृद्धि न हो ऐसा धाकड़ धामी शासन‌ में दिखाता तो नहीं है। चाहे गुप-चुप हो या फिर सांठ-गांठ अथवा फिर अनदेखी इन भ्रष्ट घोटालेबाजों की जो कहीं भी  गुल खिला सकते हैं को समझ पाने की क्षमता की! एक ओर विद्युत दरों में वृद्धि को लेकर विद्युत नियामक आयोग में जनसुनवाई चल रही है और वही दूसरी ओर घाटे का दुखड़ा रोने वाले ये मगरमच्छी आंसू वाला यूपीसीएल प्रबंधन घोटाले पर घोटालों को अंजाम देते जा रहे हैं।
यहां जिस महाघोटाले का पर्दाफाश किया जा रहा है ये कोई ऐसा घोटाला नहीं है जो हत्थे चढ़ गया तो कर दिया और माल साफ! परन्तु यह एक ऐसा घोटाला है जो रोज रोज होता है और हर महीने होता व करोड़ों की हेराफेरी कर बारे न्यारे किये जाते हैं। इस घोटाले में हो रहे बार बार एक्सटेन्शन के खेल पर यदि विराम लगा दिया जाए तथा बिजली डिस्ट्रीब्यूशन अर्थात कितनी बिजली उपभोक्ताओं को बेची गयी का पूरा लेखा-जोखा इन्वेंटरी सिस्टम की तरह हो अर्थात कितनी बिजली परचेज हुई और कितनी बेची गयी तथा शेष इनर्जी कहां गयी और क्यों, कैसे गयी पर यदी लगाम हो तो लाईन लास और बिजली चोरी की आड़ लेकर खेल नहीं खेला जा सकेगा क्यूंकि बिजली कोई ऐसी वस्तु तो है नहीं जिसको किसी गोदाम में स्टोर किया जा सके हां यह अवश्य है कि ये बिजली चोरी कराने के मास्टरमाइंड तथाकथित यूपीसीएल के जिम्मेदार अधिकारी यदि न चाहे तो एक यूनिट भी बिजली चोरी हो ही नहीं हो सकती।
बड़े और इंडस्ट्रियल उपभोक्ताओं जिन्हें 80 से 90 प्रतिशत होती है विद्युत आपूर्ति में बिजली चोरी की बात आज न करके छोटे और घरेलू उपभोक्ताओं को आपूर्ति की जाने वाली कुल‌ 10 से 15 प्रतिशत इनर्जी पर इतना बड़ा घोटाला किया जा सकता होगा सोचा भी नहीं जा सकता। इस करोड़ों की डकैती में माल ही नहीं मैनपावर का होता है अजब-गजब खेल मतलब साफ है दोनों हाथों से लूट! छोटे व घरेलू उपभोक्ताओं की संख्या देखने में तो लाखों में हैं पर उपभोग‌ तो इंडस्ट्रियल आदि से तुलना में काफी कम होता है
आज हम एक ऐसा खुलासा कर रहे हैं जिस पर यदि धाकड़ धामी शासन ने तत्काल इस विस्तार पृथा पर रोक न लगाई तो स्वत ही प्रतीत हो जायेगी कि इसमें या तो इनकी भी सांठ-गांठ और संलिप्तता है या फिर‌…! क्योंकि उक्त महाघोटाले का हरिद्वार सर्किल की निविदा में भी विस्तार कर खेला भी खेला जा सकता है और उसी चहेती टीडीएस कम्पनी के हक में ऐन-केन-प्रकरेण हथकंडे अपनाए जा सकते हैं। यही नहीं अगले वर्ष के लिए बिलिंग प्रीप्रेशन और पेमेंट्स कलैक्शन के प्रदेश के अन्य सर्किलों की तकनीकी निविदाएं खोली जा चुकी हैं बस प्राईज बिड खुलना शेष है। क्या त्रुपबाजी पर विराम लगाया जाना उचित नहीं होगा?
सूत्रों की अगर यहां माने तो इस पूरे खेल में आनलाईन‌ टेण्डर प्राक्रिया का जिस तरह से मजाक यूपीसीएल के एमडी के‌ द्वारा उड़ाया जाता है वह उत्तराखंड प्रक्योरमेंट पालिसी का सरासर उल्लंघन इस लिए भी इसकी कबायद में‌ काली कमाई की लूट दोनों हाथों से की जाती है तभी तो इस  “बिलिंग प्रीप्रेशन और‌ पेमेन्ट कलैक्शन की एक ही निविदा न करके सर्किल स्तर पर कर दी गयी ताकि एमडी महाशय की बंदूक छोटे अधिकारियों के कंधों पर चल सके और कमांडर की कमांड के अनुसार सारा लेन-देन और कान्ट्रैक्टर्स के द्वारा जो मैन पावर लगाई जानी है उसकी भी नियुक्ति में इन्हीं के बारे न्यारे क्यूंकि ये अस्थाई नियुक्तियां तीस से चालीस हजार रुपये लेकर  अयोग्य व गैर तकनीकी लोगों की कराई जाती हैं और बदले में उन विचारों को पांच से दस हजार रुपये महीने पर रख, बिलिंग का महत्वपूर्ण काम कराया जाता है और कागजों में इनकी संख्या कुछ और वास्तविकता कुछ। तभी तो एक करोड़ रुपये प्रतिमाह की बिलिंग में कान्ट्रैक्टर टीडीएस कम्पनी द्वारा40 लाखके खर्चों पर 60 लाख की कमाई की जाती है। यही नहीं उक्त कान्ट्रैक्टर के द्वारा सरकार को भी राजस्व में जमकर चूना लगाया जाता है और पीएफ से लेकर ईएसआई तक के नियमों को बलाए ताक रखकर कुछ का कुछ दिखाया जाता है।
उल्लेखनीय है कि बिलिंग की टेण्डर प्रक्रिया में भी हाथी के दांत दिखाने के कुछ और खाने के कुछ हैं तभी तो पहले ई टेण्डरिग का दिखावा करके टेण्डर फार्म से लेकर ईएमडी आए हुए निविदादाताओं से जमा कराई जाती है और फिर उन्हें अनर्गल रूप से अयोग्य ठहराकर चहेते बिडर्स कके पक्ष में बनाई गयी मनमर्जी की शर्तों पर प्रत्येक कान्ट्रैक्ट को एक्सटेंशन दे दिया जाता है और निविदा प्रक्रिया को यह कह कर टाल दिया जाता है कि अपरिहार्य कारणों वश निविदाएं निरस्त कर दी जाती हैं।इनकी इस नौटंकी से जहां अन्य बिडर्स को ठेंगा दिखाते हुए लाखों की रकम डम्पी कर उनका उत्पीड़न किया जाता है। पहले टेण्डर इनवाईट करो फिर मनमर्जी का नहीं हुआ तो अपरिहार्य कारण बताकर स्क्रैप कर दो और फिर अपने चहेते टीडीएस को ही देदो विस्तार का खेल कब बंद होगा? क्या 2022 की तरह फिर इस बार टीडीएस के पक्ष में कर दिया जायेगा विस्तार और आई हुई निविदाएं कर दी मनमर्जी से जायेगी निरस्त? वैसे तो इन महाशय की तानाशाही के आगे केन्द्र सरकार भी बौनी है तभी तो जीएसटी के लोकल रजिस्ट्रेशन के नाम पर किया जाता हैं यहा अनचाहे बिडर्स को अयोग्य?
सबसे महत्वपूर्ण तथ्य इस महाघोटाले में यह है‌ कि जानबूझकर चहेते कान्ट्रैक्टर टीडीएस कम्पनी को कम्पिटीशन से सोची समझी साजिश से बचाते हुए जिन दरों पर काम दिया जा रहा वे दरें भी अपेक्षाकृत दूसरे बिल्डर्स से कहीं अधिक हैं। जो काम 9/85 अर्बन एरिया तथा लगभग 12 प्रति की दर रूरल एरिया की दरों पर दिया गया है उसी काम को दूसरी कम्पनियों के द्वारा 7 और 8 रुपये प्रति बिल की दर से प्रतिमाह करने का खुला आफर भी दिया जाना बताया जा रहा है। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि उक्त चहेती कम्पनी टीडीएस से केवल बिलिंग का ही काम लिया जा रहा है जबकि बिलिंग के साथ-साथ पेमेन्ट कलैक्शन भी कराया जाना था ताकि यूपीसीएल की रेवन्यू महीनेवार होती रही और छोटे घरेलू उपभोक्ताओं को भी इसका लाभ मिल सके परन्तु काम अधूरा कराकर भुगतान पूरा किया जा रहा जिसे सीधे तौर पर मिल-बांट कर खुलेआम डकैती और राजस्व का गबन कहा जाए तो कोई अतिश्योक्ति ना होगी।  यह चोरी और जन-धन की लूट  यूपीसीएल के प्रत्येक सर्किल और जोन के रूरल और अर्बन एरिआओं कि बिलिंग में हो रही है जिनका कान्ट्रैक्ट इसी टीडीएस कम्पनी के पास निरंतर 2017 से चला आ रहा है।
देखिए इनके कारनामे….
यूपीसीएल से टीडीएस को 11.85 प्रति बिल मिल रहा और टीडीएस मीटर रीडर को दे रही  3.50 प्रति बिल। तभी तो घर बैठे ही हो रही बिलिंग और दिखाया जा रही है फर्जी जीपीएस लोकेशन जो आगे चल कर बनती हैं उपभोक्ताओं का परेशानी का सबब! मीटर रीडर डिपार्टमेंट को रेवेन्यू देने का कार्य करता है लेकिन डिपार्टमेंट को मीटर रीडर की भी जान का चिंता नहीं। बताया जा रहा है कि यदि इन मीटर रीडरों के साथ अगर कोई हादसा होता है तो इन्हें कोई मुआवजा नहीं मिलता।
यही नहीं यूपीसीएल के इस मुनीम एमडी को जब यही नहीं पता कि बिलिंग होनी कितनी चाहिए और हो कितनी हो रही है तो फिर तो भगवान ही मालिक हैं और घाटा तो दीखेगा ही। न कोई खाता न बही जो ये बिलिंग कर दे वही सही का चल रहा है फार्मूला क्योंकि इसी में है अपनी भारी कमाई और भला।
 वहीं दूसरों ओर प्रश्न कान्ट्रैक्टर्स के उत्पीड़न और उनके साथ छलावे की तो  उनके साथ केवल प्रिक्योरमेंट पालिसी को धोखा‌ देने के लिए निविदाएं भी आमंत्रित की जाती है दाल किसकी गलेगी यह सब पहले से ही तय होता है और इसके लिए चाह उन्हें टेण्डर स्क्रैप करना हो या फिर‌ बिडर्स को लगभग  20 हजार प्रति टेंडर तथा EMD की 5 लाख से 10 लाख प्रति सर्किल रकम को हेल्ड अप कराना हो में नहीं चूकते। ऐसी ही नौटंकी 2022 में निकले टेंडर को कई बार डेट एक्सटेंशन देकर की जा चुकी है। उत्तराखंड में कोई भी कंपनी अब टेंडर नही डालना चाहती।  मीटर रीडर का इंश्योरेंस भी नही। जबकि मीटर रीडिंग जैसे जान जोखिम वाले कार्य में इंश्योरेंस अनिवार्य है। तथा नियमानुसार दो वर्ष से अधिक किसी भी दशा में रिपीट नहीं किया जा सकता है फिर भी यहां कन्धे पीस रहे वाली कहावत चरितार्थ होती देखी‌ जा सकती है।
इस बिलिंग घोटाले में करोड़ों रुपये प्रतिमाह के घोटाले का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है क्योंकि यदि डिवीजन के अनुसार number of division wise consumers – EDD-I Rudrapur 52665, EDD Kichha 36760 A 57496 Total 1,46,921हैं।
देखिए…
सूत्रों की अगर यहां माने तो यूपीसीएल के अधिकांश SE भी यही चाहते है की वर्तमान बिलिंग एजेंसी बदली जानी चाहिए। इसलिए टेंडर निकाले गए लेकिन एमडी के तानाशाहीपूर्ण रवैये और स्वार्थ के कारण बिलिंग टेंडर प्रक्रिया लागू नहीं पा रही है।
ज्ञात हो कि ऊर्जा सचिव की एमडी यूपीसीएल पर विशेष कृपा है तभी तो पिटकुल के SOR’s प्रकरण को अमलीजामा पहनाने के लिए एमडी यूपीसीएल को ही बिना बोर्ड के कर्ताधर्ता बना दिया गया ताकि जिस तरह से यूपीसीएल में  लगभग6 सौ करोड़ के एडीबी फंडिंग वाले टेण्डरों में 70% से अधिक की SOR’s का खेल खेलकर भारी गोलमाल किया जा चुकी है।
देखिए घरेलू उपभोक्ताओं की संख्या…
ज्ञात हो कि यूपीसीएल द्वारा करोड़ों रुपये की कीमत के मीटर भी ट्रांसफार्मर और फीडर पर लगायें जा चुके हैं ताकि पता लगाया जा सके कि किस ट्रांसफार्मर और किस फीडर से कितनी बिजली का ट्रांसमिशन हो रहा है परन्तु वे मीटर आज कहां है ये एक अलग पहेली है!
देखना यहां गौर तलब होगा कि इस बिलिंग प्रीप्रेशन के खेल पर धामी का धआकशआसन क्या रुख अपनाता है? या फिर…!

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