पहले चर्चित अजब-गजब के मंत्री से ‘बिचलन’ Davieshan शब्द का दुरुपयोग
करा दे दी गयी थी कुर्सी और अब आय से अधिक करोंड़ों की नामी-बेनामी अवैध सम्पत्तियों को नजर अंदाज कर क्या धामी सरकार भी दे देगी क्लीनचिट ?
- जब नियोक्ता पिटकुल को ही नहीं पता कि ली-एन समाप्त व सेवानिवृत्त हो चुका उसका मुख्य अभियंता अनिल कुमार है कहाँ ?
- तो किस गुप्त शासनादेश से अथवा दंबगई व अनाधिकृत रूप कैसे विराजमान हैं जनाब यूपीसीएल की एमडी की कुर्सी पर ?
- विदद्युत नियामक आयोग भी सूचना से अनिभिज्ञ तो पार्टीशिपेशन किस अधिकार से ?
- क्या इस सेवा विस्तार असमंजस में सरकार या फिर कोई दुविधा ?
- पारदर्शिता वाली धााकड़ धाामी सरकार में संशय व सस्पेंश क्यों ?
- क्या ये संवैधानिक संकट व वित्तीय अराजकता नहीं ?
- क्या यहाँ जंगल राज है ? यदि , नहीं तो फिर एक्शन क्यों नहीं?
- सूचना के अधिकार अधिनियम का भी उड़ाया जा रहा माखौल!
- क्या अजय अग्रवाल की नियुक्ति के लिए किये/करायेे गये ‘विचलन’ शब्द के प्रयोग से सारे दोष नजरअंदाज व दोषमुक्त वाली घोटालों और भृष्टाचारों की फाईलें खुलेंगी और निष्पक्ष होगी कार्यवाही?
- क्या डीपी व एमडी की साँठगाँठ के चलते करोड़ों की RDSS फंडिंग एवं पेनाल्टी माफ, क्रियेट पॉवर पर्चेज प्रकरण एवं एक ही कॉकस के टेण्डर पूलिंग सहित अनेकों खेलों पर होगा एक्शन?
- क्या अजय अग्रवाल की नियमानुसार ‘ली-एन’ से होगी पिटकुल में मुख्य अभियंता के रूप में वापसी या फिर दोहराई जायेगी विवादित परम्परा?
- क्या यह अन्य योग्य, सुपात्र अभिंताओं से अन्याय, अत्याचार नहीं?
- क्या डीपी अजय अग्रवाल व उसके परिजनों की होगी गहनता से जाँच और एक्शन?
खुली जाँचों की गयी भैंस पानी में—! बंद कमरे में कराई गयीं दर्जनों इन लाड़लों की जन शिकायतों से लागा बिजीलेंस की चुनरी पर पर भी काला दाग (?), कैसे हटेगा?
क्या धामी शासन ने बंद कमरे में कराई जाँचे, डाला पर्दा और दे दी क्लीनचिट?
पिटकुल के प्रभारी एमडी ध्यानी की विवादित डिग्री व नियुक्ति पर कब लगेेगा विराम और होगा एक्शन: ‘तीसरी आँख का तहलका’ कई वर्षों पूर्व ही कर चुका है भंडाफोड़
(ब्यूरो चीफ सुनील गुप्ता की पड़ताल)
देहरादून। उत्तराखंड ऊर्जा विभाग के यूपीसीएल विगत काफी समय से समाचारों व राजनेताओं के गलियारों में खासी और तरह-तरह की चर्चाओं में है परन्तु ये सभी आवाजें धाकड़ धामी के नक्कारखाने में तूती की आवाज बन कर रह गयी हैं जबकि किसी विरोधी नेताओं ने ही नहीं बल्कि सत्ताधारी नेताओं व विधायकों ने भी यूपीसीएल के प्रबंध निदेशक अनिल कुमार जैसे तथाकथित भ्रष्ट व घोटालेबाज के सेवा विस्तार पर आश्चर्य व्यक्त करते हुये अपनी तीखी प्रतिक्रिया भी दी थी और इस प्रकार के दो साल के सेवा विस्तार दिये जाने को अनुचित ठहराया था उक्त गुत्थी आज तक रहस्यय बनी हुई पारदर्शिता को रो रही है!
अब देखना यहाँ यह गौरतलब होगा कि क्या बड़े मियाँ और छोटे मियाँ की इस पुरानी जोड़ी नियमों की बंधिशों व पिछली ‘विचलन’ शब्द की गलती को सरकार में बैठे अपने खास आकाओं की मदद से नजर अंदाज करवा, विस्तार करा पाती है या फिर कोई और शतरंज की चाल देखने को मिलेगी?
उल्लेखनीय तथ्य तो यहाँ यह भी है इन डीपी महाशय के द्वारा अपने शासन से जारी नियुक्ति पत्र संख्या 1820/1(2)/2021-05-15/2021 दिनांकित 16 दिसम्बर 2021 की चरण संख्या (5,6,8,और12) का भी अक्षरसः अनुपालन भी अभी तक नही नहीं किया जाना बताया जा रहा है। वैसे भी इनका कोई क्या बिगाड़ सकता है जिसका गुरू महा गुरू हो! और फिर चेला भी तो कम दंबग नहीं हैं गुरु के पदचिन्हों पर भी चलना जानता है!
ज्ञात हो कि उक्त नियुक्ति आने वाली 15 दिसम्बर को तीन वर्ष की अवधि तथा नियोक्ता पिटकुल से स्वीकृत ‘ली-एन’ भी समाप्त समाप्त हो रही है और जनाब को मुख्य अभियंता के रूप में ही पिटकुल में ही वापसी भी करनी पड़ेगी?
यहाँ उल्लेख करना होगा उचित होगा और पाठकों के संज्ञान में लाना आवश्यक प्रतीत हो रहा है कि यूपीसीएल की कुर्सी पर अभी भी विराजमान अनिल कुमार जो कि पिटकुल के एक कर्मचारी ूुख्य अभियंता के रूप में 31-10-2024 तक थे उनकी सेवायें व ‘ली-एन’ दोनों ही नियमानुसार स्वतः ही सेवानियमावली के अनुसार समाप्त हो चुके और इस बात की पुष्टि पिअकुल आर-टी-आई- में कर भी चुका है। पिटकुल ने यह भी जानकारी उपलब्ध कराई है कि अनिल कुमार ने अभी तक इतनी लम्बी अवधि बीत जाने के उपरान्त भी कोई दस्तावेज पेंशन आदि के सम्बंध में रिमाइंडरों के उपरान्त भी नहीं प्रस्तुत किये है जो कि सेवा निवृत्ति से पूर्व ही अनिल कुमार द्वारा प्रस्तुत किये जाने चाहिए थे। ज्ञात हो कि उक्त दबंग महीनविभूतियों का इतना प्रभाव है कि शासन के सम्बंधित व यूपीसीएल के लोक सूचना अधिकारी भी जानबूझकर आरटीआई आवेदन में जानकारी मुहैया कराने में कतरा रहें है और अधिकारों का अतिक्रमण करके समय भी नष्ट करा रहें ताकि—! जो कि सरासर सूचना के अधिकार अधिनियम 2005 की उल्लंघन के दायरे में आता है जिस पर भी उचित कार्यवही सक्षम स्तर पर की जा रही है।
यह भी ज्ञात हो कि उत्तराखण्ड विद्युत नियामक आयेग जैसी संवैधानिक संस्था को भी यूपीसाएल के एमडी पद पर अनिल कुमार के सेवा विस्तार सम्बंधी कोई जानकारी व सूचना नहीं है ऐसे में एक आश्चर्य करने वाला प्रश्न उठता है कि जब उक्त महाशय यूपी-सी-एल- में एमडी हैं या नहीं इस बात की ही जानकारी दोनों महत्वपूर्ण संस्थओं को नहीं तो जनाब किस अधिकार और आदेश से कुर्सी पर विराजमान होकर विगत लगभग डेढ़ माह से किस कानून व नियम के तहत अनाधिकृत रूप से कार्यों को अंजाम दे रहे है? क्या यह कोई लाला की निजी दुकान है या नानी का घर है अथवा जंगल राज? क्या इस यक्ष प्रश्न का भ्रष्टाचार पर ढोल पीटने वाली वर्तमान धाक्ड़ धामी सरकार को जनता के समक्ष जनहित में खुलासा करेगी और अपना मौन तोड़ेगी? या फिर यूँ ही—! कहीं अंधेरे में तो नही रखा गया है सीएम को !
मजेदार बात यह है कि जिस सेवा विस्तार की परम्परा को निरंतर जारी रखते हुये वर्तमान सरकार अपनी पीठ थपथपा रही है उस से विवादित एवं भ्रष्टाचार और घोटालों में चर्चित रहे अधिकारियों के संवा विस्तार अथवा कार्यकाल में अवधि विस्तार से सरकार की छवि को खासा बट्टा भी लग रहा है!
ऐसा प्रतीत हो रही है कि इस प्रदेश में इन भ्रष्टाचारियों के अतिरिक्त ईमानदार छवि वाले योग्य अधिकारियों और अभियंताओं का टोटा हो गया है? यदि मान भी लिया जाये कि इन खाली पदों पर नये सिरे से नियुक्तियो होनी हैं तो उसमें भी सरकार की मशीनरी एवं शासन में बैठे आला अफसर ही दोषी निकलेंगे जिनकी हठधर्मिता या उदासीनता और लापरवाही से विगत इतने लम्बै समय से बहुप्रतिक्षित नियुक्तियाँ नहीं हुईं, आखिर इसकी बजह जानने का हक सभी को है?
प्रस्तुत हैं कुछ दस्तावेजों की जनहित में छाया—